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Sunday, September 14, 2014

डॉ बरमेश्वर प्रसाद की पुण्यतिथि पे श्रद्धांजलि

संक्षिप्त परिचय
नाम - Dr बरमेश्वर प्रसाद
जन्म - 1924 बक्सर,बिहार
पिता- स्व. डॉ ठाकुर प्रसाद 
1947- MBBS (5 विषयों में Hons.)
1947- बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के निजी चिकित्सक के पद पे नियुक्ति
1948- पटना मेडिकल कॉलेज में अध्यापन शुरू
1950- चिकित्सा विज्ञानं की सर्वोच्च डिग्री MRCP लेने के लिए लन्दन चले गए
1962- RMCH(अब रिम्स) की स्थापना के साथ ही मेडिसिन विभाग के संस्थापक, प्रोफेसर  और विभागाध्यक्ष बनाए गए.
अन्य- रांची विश्वविद्यालय के सीनेट के सदस्य , बिहार स्वास्थ्य संगठन के अध्यक्ष , IMA -बिहार के अध्यक्ष , बहुत सारे विश्वविद्यालयों से मानद उपाधियों के द्वारा सम्मानित.
15 सितम्बर 1981- स्वर्गवास

१५ सितम्बर - पुण्यतिथि उस चमकते सितारे की जिसने अपनी रौशनी से सिर्फ रांची या झारखण्ड-बिहार ही नहीं बल्कि पुरे चिकित्सा विज्ञान को प्रकाशित किया.स्वर्गवास के तीन दशक बाद भी डॉ. बरमेश्वर प्रसाद अपने आदर्श और व्यक्तित्व के साथ चिकित्साविज्ञान से जुड़े हर दिल में जीवित हैं - चाहे वो rmch/रिम्स के उनके छात्र हों, सहकर्मी हों या उनके मरीज़. जन्म से ही अत्यंत प्रतिभाशाली डॉ बी प्रसाद ने 1947 में एम् .बी.एस. की परीक्षा 5 विषयों में ऑनर्स के साथ  उतीर्ण की. उनकी प्रतिभा के कारण ही बिना हाउसमैनशीप  किये ही उनकी नियुक्ति बिहार के पहले मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के निजी चिकित्सक के रूप में हुई. 1950 में MRCP की डिग्री के लिए लन्दन जाने पर वहीँ बस जाने के लिए कई प्रस्ताव उनके पास आये मगर अपनी देशभक्ति की भावना के कारण वे अपने मिटटी के करीब लौट आये और नवस्थापित RMCH के मेडिसिन विभाग के संस्थापक और विभागाध्यक्ष बने. जिस समय में भारत में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अंकुर भी नहीं फूटे थे उस अन्धकार में भी डॉ. प्रसाद अपने विद्यार्थियों को जेनेटिक्स और ऐसे ही कई एकदम नयी नयी खोज की गयी चीजों के बारे में भाव-विभोर कर देने वाले लेक्चर दिया करते थे.एक बार एक जज साहब जो जर्मनी से अपने ह्रदय रोग का इलाज़ करवा रहे थे  वे डॉ प्रसाद के पास पहुंचे मगर ये देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि यहाँ भी उन्हें वही जर्मनी वाली नयी नयी खोज की गयी दवाई  लिखी गयी जो  अब तक भारत के किसी कोने में यहाँ तक कि एम्स में भी शुरू नहीं की गयी थी. उनके  ज्ञान की कोई सीमा नहीं थी. ये कहने में जरा सा भी हर्ज़ नहीं होगा की बिहार ही नहीं पुरे बिहार-बंगाल-उड़ीसा-झारखण्ड इत्यादि क्षेत्र में चिक्त्साविज्ञान  के पौधे को अपने खून-पसीने और प्रतिभा से सींचा है उन्होंने.
कहते हैं कि उस समय rmch में आने वाले मरीजों में आधे से भी ज्यादा हिस्सा डॉ. बी प्रसाद से इलाज़ कराने के लिए आने वालों का होता था. रांची का ऐसा कौन सा घर नहीं होगा जिस घर के किसी व्यक्ति का इलाज़ उनसे नहीं कराया गया होगा. क्या मंत्री, क्या व्यवसायी, क्या ऑफिसर या कोई भी साधारण सा आदमी- सबकी एक ही कतार होती थी उनके क्लिनिक में. अपने आदर्शों के पक्के आप एक कुशल चिकित्सक के साथ साथ एक समाज सेवक, विचारक और सच्चे देशभक्त भी थे. अपनी सभ्यता और संस्कृति से उनके लगाव के बारे में बताते हुए उनके पुत्र डॉ. उमेश प्रसाद बताते हैं- "बाबूजी कभी भी हमसे अंग्रेजी में बात नहीं करते थे.उस समय रांची में अच्छे अच्छे इंग्लिश-माध्यम  स्कूल थे मगर बाबूजी ने हमारी पढाई हिंदी माध्यम के विद्यालयों में ही करवाई. उनका कहना था कि अंग्रेजी को बस भाषा के तौर पर ही पढ़ा जाना चाहिए और वो भी पुरे मेहनत के साथ मगर अपनी मातृभाषा की अवहेलना करके कदापि नहीं."उनकी लोकप्रियता के बारे में बताते हुए वे कहते हैं-" कई बार ऐसा होता था कि बाबूजी हमें फिल्म दिखाने सिनेमाघर ले जाते थे मगर बीच फिल्म में ही सिनेमाघर की बत्ती जल जाती थी, मालूम चलता था कि कुछ लोग उनकी गाडी को पहचान कर उन्हें ढूंढते हुए सिनेमाघर के अन्दर तक आ गए हैं . फिर उन्हें बीच में ही उठकर जाना पड़ता था.....".जब उनकी शवयात्रा निकली थी तो डॉक्टर्स कॉलोनी-बरियातू से  लेकर हरमू स्थित शमशान तक सड़क के दोनों तरफ हजारो-लाखों की संख्या में उनके चाहनेवाले अपनी श्रधान्जली लिए घंटो खड़े रहे थे.
मरीजों को डॉ. बी प्रसाद पे इतना भरोसा था कि कैंसर के रोगी भी जो दिल्ली-मुंबई में इलाज़ करवा के हार गए होते थे वे घंटो इनके क्लिनिक के बाहर बस इस इंतज़ार में बैठे रहते थे कि अगर एक बार वे उन्हें छू भर लें तो शायद उनकी तकलीफ ख़त्म हो जाएगी.
उनकी जिज्ञाषा की कोई सीमा नहीं थी. मेडिकल साइंस तो अपनी जगह थी ही मगर साथ साथ ही विज्ञान की अन्य शाखाओं जैसे प्लाज्मा फिजिक्स ,नुक्लियर केमिस्ट्री  एवं भूगोल , इतिहास , खेल-कूद, देश की विदेशनीति -राजनीति, अध्यात्म इत्यादि  यानी जानने लायक हर बात पे उनकी अभिरुचि हमेशा उतनी ही सजीव और संवर्धित बनी रहती थी. वे हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, भोजपुरी, बंगला, उड़िया, मैथिलि  इत्यादि तो जानते ही थे मगर बाद में उन्होंने रेडिओ की मदद से मलयालम और तेलुगु भाषा भी सीखना शुरू किया था.
एक डॉक्टर के सामाजिक सरोकार और जिम्मेदारियों को वे बखूबी समझते थे. उनके अपने दर्शन और सिद्धांत आज भी हर डॉक्टर के लिए मार्गदर्शक के रूप में उपयोगी है. वे डॉक्टर और मरीज़ के बीच  के रिश्ते को सामाजिक-आर्थिक और राजनैतिक तीनो स्तर  पर स्थापित करना चाहते थे, न की सिर्फ व्यावसायिक स्तर पर. यह रिश्ता पूरी तरह मरीज़ के कल्याण को समर्पित ‘समजिविता’ का होना चाहिए. मगर मरीज़ को भी अपने दायित्व का  वहन उसी जिम्मेदारी के साथ करना चाहिए. वरना यह ‘समजिविता’ का सम्बन्ध बहुत जल्दी ही ‘परजीविता’ में बदल जाता  है जहाँ दोनों पक्षों में से किसी एक का आर्थिक-मानसिक-सामाजिक शोषण शुरू हो जाता है. सचमुच असाधारण प्रतिभा, विलक्षण सोच वाले विचारक, एक सच्चे देशभक्त, अद्वितीय शिक्षक ,अमूल्य  वैज्ञानिक और बिहार के लिए रत्न - डॉ बरमेश्वर प्रसाद जो जीते जागते किंवदन्ती से कम नहीं थे हमेशा हमेशा के लिए हम सबके प्रेरणाश्रोत बने रहेंगे.


डॉ बरमेश्वर प्रसाद की पुण्यतिथि पे श्रद्धांजलि 
डॉ बरमेश्वर बाबू