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Monday, February 25, 2013

और कितने सवाल -एक नाटक



और कितने सवाल -एक नाटक

                                               -by Dr. Govind Madhaw

१.
नेपथ्य -
ज्वाला दीपक संग संग
बैठे थे थाम के  रंग मंच
गहन विचार और मंथन था
नारी उत्पीडन  का क्रंदन था

ज्वाला- एक कहानी सुनोगे? ना  मत करना. तुम्हारे साथ साथ सब को सुनानी है..
दीपक- सुनाओ ..
ज्वाला-     मन की आँखों से 
महसूस करो हर हलचल को
नारी ह्रदय के कलकल को
समाज रूपी इस दलदल को 

२.
{लेडी डॉक्टर
गर्भवती गंगा
सास}

{"यहाँ भ्रूण का लिंग जांच  नहीं होता है, यह कानूनन अपराध है"}

सास- मैडम चेक अप करवाना है
{डॉक्टर ................रिपोर्ट लेकर आती है
सास के कान में कुछ कहती है
सास आश्चर्य चकित..दुःख...गुस्सा }
डॉक्टर से--आप तैयारी कीजिये मैं गंगा को समझाती हूँ

{गंगा नहीं मानती है,,इनकार करती है}
सास- मैडम, आप ही समझाइये 

डॉक्टर-
तुम्हारे पेट में जो लेटी  है
वो बेटा  नहीं...........बेटी है
ख़तरा...खर्चा ..खामियों की पेटी है..
दूर हटा दो..नाम मिटा दो
५ हज़ार में इसे गिरवा  दो
future के लाखो लाख बचा लो

गंगा --
असमंजस में हूँ...
नौ महीने तक जिसे सींचा है मैंने अपनी कोख में
कभी तो ये नहीं सोचा की ये बेटा है या बेटी
मैं तो बस इतना जानती हूँ की मैं इसकी माँ  हूँ 
अब इसी माँ को.....????///

नेपथ्य..
"ममता ने क्यों  मौत का दामन थाम लिया है
कसमकस में पड़कर माँ ने विषपान किया है
मा के आँचल में स्वार्थ का दाग लगाकर
नारी  ने ही नारी को बदनाम किया है*३ "
{आश्चर्य..संतुष्टि...गुस्सा/...निर्णय }
गुस्से में गंगा उफनती है ,
खुद के मन को झकझोरती है
फैसले को तोडती है
मौत का साथ छोडती है
ममता की और रुख मोडती है

{entry of jwala and deepak, others आउट }
 ज्वाला- मगर कहानी इतने पे ख़त्म नहीं होती
      "जननी की जिंदगी जंग है इस जहाँ में" 
पग पग पर प्रहार 
कदम कदम पर कांटे
सांस सांस पर सजा
बात बात पर बदसलूकी


३.
{गंगा के गोद में नवजात बेटी}

 नेपथ्य -
गंगा  ने घर के फैसले के खिलाफ एक बेटी को जन्म दिया,नाम, जानकी
 शायद एक ममता की जीत हुई
मगर राह  मुश्किल थी
घर वालो का बर्ताव....
समाज के ताने...
* कुलदीपक तो जला नहीं, अब वंश कौन बढ़ाएगा....
* और जमुना का तो जुडवा बेटा  हुआ है, हमारा ही नसीब खराब था
* बेटी हो गयी है...न जाने आगे कौन कौन सी विपति ले कर आएगी ये
मगर गंगा ने जंग ठान रखी थी ...हिम्मत बुलंद थे उसके...

गंगा- जो मेरे साथ हुआ, वो मैं अपनी बेटी के साथ नहीं होने दूंगी

"कुलदीपक नहीं तो क्या हुआ, कुल ज्योति  भी तो होती है 
बेटी भी सब फ़र्ज़ निभाकर सारे  स्वप्न संजोती है"  


नेपथ्य-
क्या विडंबना है इस समाज की
एक तरफ तो दुर्गा काली लक्ष्मी सब की पूजा होती है
और दूसरी तरफ घर में बेटी हो तो.....इतनी नफरत
एक तरफ पूजा अनुष्ठान में कन्यापुजा की जाती है नन्ही सुकुमारियो की
और दूसरी तरफ जन्म् लेते  ही अफीम/नमक का प्रसाद


४.
नेपथ्य-
जानकी बड़ी हो गयी,
मेडिकल की तैयारी कर रही है,
डॉक्टर बनना चाहती है
मगर ये सब इतना आसान नहीं था
घर वाले लड़की की पढ़ाई के सख्त खिलाफ
मगर गंगा कहाँ मानने वाली थी
उसने गंगा की लहरों की तरह मचलते हुए कह दिया

"मेरे गहने बेच दो, पर जानकी को स्कूल भेज दो
जब बेटे को पढ़ाना फ़र्ज़ है..
तो बेटी को पढ़ाने में क्या हर्ज़ है
क्या लड़की समाज का क़र्ज़ है?"


* चुल्हा जलाना न सीखेगी???कलम चलाएगी???कलेक्टर बनेगी का??
* १८ साल की हो गयी हो..शादी नहीं हुआ है...का हुआ कोई छुआ नहीं है का अबतक ...
* इतना पढेगी तो लड़का भी तो ......बहुत दहेज़ लगेगा....
* बेटा नहीं हुआ तो  इसी को बेटा बना लोगी का ??.....लोक-लाज-समाज का कुछ ख्याल ही नहीं है....
* {सीटी बजाके- भोजपुरी में}... अरे ये जिला हिलावेवाली ...बिजली गिरावे कहाँ जात बाड़ी ......इतना वोल्टेज ....अरे बाप रे बाप....करंट मारे लू का....

{फिर से रोते हुए दौडती है जानकी....माँ के आँचल में छुप जाती है ..}

नेपथ्य-
रोज़ कोचिंग के लिए घर से निकलते समय घर वालो के ताने और बाहर में आवारा लडको की फब्तियां .
बाहर  जाती है तो माँ को देखकर झूठी मुस्कान लिए.
मगर लौटती है तो परेशान सी आंसू  लिए.
गंगा आँचल से जानकी के आंसू पोंछती है और .....


५.
नेपथ्य-
जानकी का मेडिकल में सिलेक्शन हो गया
दिल्ली जाना है पढने
दुविधा फिर से
घर से इतनी दूर अकेली लड़की कैसे रहेगी
आखिर लड़की को इतना पढ़ने की क्या जरुरत है
कुछ उल्टा-पुल्टा हो गया  दिल्ली में तो
जानकी नहीं जाना चाहती दिल्ली अपनी माँ को छोर कर,
वो नहीं चाहती परिवार को और संकट में डालना
वो समझती है अपने लड़की होने के मायने
मगर गंगा जिद करती है
जिस जंग को कोख से लडती आ रही हो, उस से इतनी जल्दी हार नहीं मानने देगी

जानकी-
तुम्हे छोड़ कर इतनी दूर...कहाँ से लाऊंगी 'माँ का आँचल' दिल्ली में 

गंगा-
 तो क्या हमेशा मेरे पल्लू में ही रहेगी ...{आंसू  और हंसी के साथ}पगली कही की
जानकी- मगर डर लगता है न माँ ,

गंगा- तो क्या मेरी इतने दिनों की मेहनत और लड़ाई यूँ ही बेकार...
क्या इतनी कमजोर है मेरी शेरनी.....
क्या अपने माँ के सपनो को बह जाने देगी गंगा की तरह समंदर में... 
या उफान बनकर टकराएगी चट्टानों से .....

जानकी-अब तुम भी न...

६.
नेपथ्य -
जानकी दिल्ली में
डॉक्टर बनने वाली है...
इंटर्नशिप में है
सुन्दर है बहुत
कई लडको का रिश्ता आता है
मगर उम्र के इस पड़ाव में प्यार हो जाता है उसे
लड़का का नाम है राम
लड़का खुद काफी नेकदिल है
राम गंगा से जानकी का हाथ मांगता है
सब तैयार थे मगर
परेशानी का नया सबब
राम के परिवार वाले
मांग बैठे दहेज़
क्या इतना पढ़कर भी जानकी की शादी दहेज़ बिना रुक जायेगी ??
और राम का प्यार??
राम से पूछ  बैठी जानकी
राम भी अपने परिवार की मजबूरी गिना बैठा


जानकी-तो क्या मेरी पढ़ाई मुफ्त में हुई है...और हमारा प्यार ????प्यार की भी कीमत ....सब बिकाउ है????तुम तो बड़े intelectual बनते थे..बड़ी बड़ी डिंग हांके थे डिबेट में ...आन्दोलन करने वाले थे बदलाव के लिए ..मगर आज तुम भी......?????
राम-वो तो ठीक है जानकी मगर मम्मी पापा को समझा कर हार गया हूँ मैं, अब उन्हें तो नहीं छोड़  सकता न मैं तुम्हारे लिए, बोलो तुम ही..आखिर ... 

जानकी-तूम कुछ करने से रहे..अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा .....

नेपथ्य
तब जानकी ने
राम से छुप कर
अपने प्यार की खातिर
कर्ज लिया बैंक से
दहेज़ देने के लिए...
शादी की तैयारी शुरू...

दृश्य 7
राम और जानकी शोपिंग कर के लौट रहे थे रात 9 बजे
ऑटो में थे
की कुछ गुंडे आ गए
जानकी को घींच कर ले गए

सुबह फटेहाल में जानकी पड़ी हुई मिलती है सड़क पर
राम शादी का रिश्ता तोड़ देता है
जानकी पागल हो जाती है

नेपथ्य
बेवफाई गूंजी ...मानवता सहम गई ....दिन दहाड़े.....भरे बाज़ार में हिजड़ो ने कुत्तो जैसी हरकत की ...वो चीखती रही...जख्म बिखरते रहे .....जिसका दामन थाम के निकल पड़ी थी ...उस ने भी तो अब छोड़ दिया....
शायद जानकी की हंसी और रुदन यही बयां करते होंगे -

"मेरे जख्मो को फिर से सहला गया है कोई
टूटते दिल को भी आज दहला गया है कोई
शागिर्द  बनकर जो चला था साथ हर पल
मेरे सपनो के सीसे पे पत्थर लगा गया है कोई
होश रख कर भी करुँगी क्या अब मैं
मुझे पागली-बस्ती का बाशिंदा बना गया है कोई
मेरे जख्मो को फिर से सहला गया है कोई "

दृश्य 8
नेपथ्य-
6 महीने  बाद
राम अपने क्लिनिक में
एक गरीब आदमी डरा हुआ अपनी घायल बीबी को लेकर आता है
उसका नाम है रावण बीबी का नाम है सीता

डॉ राम- हुआ क्या है इन्हें?
रावन- कुछ गुंडों ने.....प्लीज़ डॉक्टर साहब मेरी बीबी ..इस रावन की सीता को बचा लीजिये...इसकी जान बचा लीजिये ....
डॉ. राम- क्या???कहाँ..कैसे..कब.....
रावण- कितनी बार कहूँ की बलात्कार हुआ है???थाणे में..समाज में....चौक चौराहे पे..कैमरे के सामने..सब को चिल्ला चिल्लाकर कहूँ क्या की मेरी बीबी की इज्ज़त लुटी गयी है...क्या आपको फर्क पड़ता है इस से ...अरे आप इलाज़ कीजिये न....
डॉ राम - तो क्या अब भी तुम इस से....??????
रावण- मतलब क्या है आपका...ये बीबी है मेरी...मैं  रावण हूँ ..कोई सतयुग का राम नहि जो अपनी सीता को छोड दूँ ......

नेपथ्य
रावण को फ़िक्र नहीं घटना की
चिंता है तो बस सीता की
कौन बड़ा--- रावण या राम
कलियुग का रावण या राम

अग्निपरीक्षा देती जानकी
पगली गली गली फिरती जानकी
रावण ने तो फ़र्ज़ निभाया
पति होने का क़र्ज़ चुकाया
मगर  राम?
किस हद तक तुमने ये अन्याय किया है ...बोलो
विकट समय में निकट न रख कर त्याग दिया है ..बोलो
त्रेता से क्या अब तक नारी छलती रहेगी?
स्वार्थ-वासना-लालच में वो जलती रहेगी ?
कब बदलोगे ?
हां हां  कब बदलोगे ?बोलो?
अपने दिल को टटोलो
अंधी रस्सी  खोलो

अबला को न बला बनाओ
जाओ जाओ गले लगाओ
त्रेता से क्या अब तक नारी छलती रहेगी?
स्वार्थ-वासना-लालच में वो जलती रहेगी ?


दृश्य 9
ज्वाला कहती है कहानी ख़त्म
ज्वाला का एम्स में पीजी में चुनाव हुआ है
तभी..
अरे मम्मी आप

अरें नानी माँ भी 
उसके माँ  और कोई नहीं बल्कि जानकी हैं

नेपथ्य...
और न जाने कितनी गंगा समाज रूपी बाँध में दब कर अपना आस्तित्व खो देती है
कितनी ही जानकी दहेज़ रूपी अग्निपरीक्षा में भष्म हो जाती है
कितनी ही ज्वाला वक़्त के थपेड़ो से बूझकर धुंआ सी बिखर जाती है
और रोज होता है हमारी इंसानियत, हमारे आस्तित्व, हमारे सभ्यता का गैंग रेप ...
आखिर और  कितने सवाल पूछने होंगे हमें खुद से
और कितने सवाल....

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