Tuesday, January 12, 2021
Commentary on 'Celphos': one of my story
Monday, May 21, 2018
सिलेट पेंसिल
एक दौर था वो जब पलामू के गाँव मे सारे बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ते थे. प्राइवेट स्कूल का कल्चर नहीं आया था. अंग्रेज़ी मीडियम का भूत भी नहीं सवार हुआ था किसी गार्जियन पर. सब बच्चे अपना अपना बोरा और बोरा का ही बना हुआ बस्ता ले कर स्कूल जाते थे.
ओह! क्या दिन थे वे. मासूमियत से लबरेज हम बच्चे. सब के बस्ते में सीलेट और चौक या चुना वाला पेंसिल. ककहारा मात्रा और गिनती लिखना सीखते थे और तुरंत थूक लगा के मिटाते भी थे.
'अरे. विद्या में जूठा करेगा? सरस्वती माता गोसा जाएगी. प्रणाम करो.'
किसी को कलम कागज से लिखते देखते तो मन ललचा जाता था. कब हम भी कॉपी मे लिखेंगे. मगर सिलेट में लिखते हुए हज़ारों गलतियाँ करने की आजादी थी. पेंसिल और कट-पेंसिल अलग अलग चीज़ थी. कटर से छीलने वाला कट-पेंसिल और चौक वाला सिर्फ पेंसिल. रँग बिरंगा लिखने वाला पेंसिल.
बचपन खत्म हुआ तो कलम मिल गया, छूट गया सिलेट. मगर अब हर कदम संभल कर रखना था, हर अक्षर सोच कर लिखना था. क्योंकि अब गलतियाँ मिटती नहीं, हमेशा के लिए दाग बन कर रह जाती हैं.
किसी के पास मिट्टी वाला सिलेट तो किसी के पास प्लास्टिक वाला होता था. प्लास्टिक वाला टूटता नहीं था, लेकिन घिस कर उजर हो जाता था, जिसमें चौक नहीं उगता था. लेकिन प्लास्टिक वाले में रबर गोली से abacus बना रहता था, उसका यूज़ करना तो नहीं आता था हमें पर खेलना जरूर आता था उससे.
तब चंदा मामा हुआ करते थे- दूर के,
पुआ पकाए गुड़ के
अपने खाए थाली में
हमको देते प्याली में
प्याली जाती टूट
हम भी जाते रूठ.
सूरज और झोपड़ी - चित्रकला के नाम पर बस यही बना पाते थे.
और 4 बजते ही लाइन में लगकर समवेत स्वरों में मासूम कंठ गा उठते - "एक पर एक ग्यारह, एक पर दो बारह,... दो पर सोना बीस. मास्टर जी का फीस. टीस टीस टीस..."
अब तो बच्चे कॉपी कलम से आगे निकल टैब्लेट मोबाइल तक पहुंच गए हैं. पता नहीं अब किसी स्कूल मे सिलेट प्रयोग में आता भी है कि नहीं.
क्या अब के बच्चे भी चॉक खाते हैं?
क्या अब भी बच्चे दूसरे की पेंसिल चोरी कर विद्या कसम खाते हैं?
क्या अब भी बच्चे शनिवार को सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल होकर गाना गाते हैं?
क्या अब भी मिडिल क्लास के बच्चे सरकारी स्कूल में जाते हैं?
क्या अब भी सरकारी स्कूल में मास्टर साहेब ओतना ही दुलार से हाथ पकड़ कर अ.. आ.. लिखना सिखाते हैं....
काश कि फिर से उसी दौर में पहुंच जाते हम जब हाथ में सिलेट होती और होती गलती और मनमानी करने की आजादी. ना होता इतनी समझदारी और किताबों का बोझ, ना ही सम्हल सम्हल कदम रखने की जरूरत.
© Govind Madhaw
#ठेठ_पलामू
Wednesday, April 11, 2018
📖 My first publication
प्रेम-आशीर्वाद-विश्वास बनाये रखें.
Wednesday, January 24, 2018
ल.प्रे.क.12: Hormone
Thursday, December 28, 2017
100 kisses of death: episode 05- 'पास-फेल'
Ⓒ Govind Madhaw
Saturday, November 18, 2017
100 kisses of death: episode 04- 'वक़्त'
Ⓒ Govind Madhaw
Sunday, October 22, 2017
ल.प्रे.क.10: छुट्टी का दिन
आज सुबह से ही घर घर जैसा लगता है।
जवान लड़की पर सब की नज़र होती है।
अतएव लड़की अपने प्रियजन से संवाद स्थापित करने में असमर्थ हो रही है।
प्रियतम रूठ रहा है।
लेकिन साजन को इंतज़ार करना पड़ेगा अपनी नाराज़गी जताने के लिए भी।
फोन हाथ में लिए बैठे हैं दोनों।
फुर्सत मिलते ही अपनी अपनी दलील पेश की जाएगी।
दोनों बेकरार हैं।
काश कुछ आता तो लोग उसमे व्यस्त होते।
अखबार भी सुबह ही पढ़ दिया गया है।
पड़ोस वाले चाचा भी गप हांकने नहीं आ रहे आज, उनके बेटे की बैंक की परीक्षा है।
सारे मार्केटिंग वाले sms भी अभी ही आ रहे हैं,
वो चाह कर भी फोन silent नहीं कर पा रही है।
कुछ छूटने का डर है।
कुछ मिलने का इंतजार है।।
चिकेन की महक से बच्चे किचेन के इर्दगिर्द चहक रहे हैं।
दादी गर्म मसाला पीस रही है।
नाश्ता भी देर से मिलेगा।
लड़के ने रजनीगंधा- तुलसी से मूह प्रक्षालन कर लिया है।
एकांत के अभाव में अब तक धुएं से मिलाप नहीं हो पाया है।
चाचा शौच गृह में स्वच्छता अभियान चालू करने वाले हैं इसीलिए उधर का भी आइडिया बेकार है।
जरूरी हिदायतें और गुस्सा दिखाने की भी रस्म अदा करनी है।
पड़ोस में भाभी ने भी बुलाया है, उनकी सहेली भी...
एक तरफ से निश्चिंत हो तब ना दूसरी तरफ वांछित प्रदर्शन हो पायेगा।
Sms में भाव व्यक्त नहीं कर पाता,
अनर्थ ही हो जाता हर बार है,
साहित्य की अवहेलना का शिकार है।
या फिर सब ने बदल लिया रोजगार है।
शायद प्यार में भी उपवास की दरकार है।
काश कि मॉर्निंग वॉक के वक़्त वो भी उठ पाती।
काश कि घर में तीसरी मंज़िल भी होती।
काश आज भी उसका कंप्यूटर क्लास होता।
काश भाभी दूसरे दिन बुलाती।
काश काश काश... ये लालची मन का कितना विस्तार है!
शायद लालच भी एक तरह का प्यार है।
आज रविवार है।
आज ही इतवार है।
Sunday, October 1, 2017
ल प्रे क 09: vacation
फिर वही खीच-पीच, कीच कीच!
असाइनमेंट्स, क्लास.
अटेंडेंस, मार्क्स.
ड्यूटी, नौकरी.
बॉस, सैलरी.
सिग्नेचर,फाइल.
फेक स्माइल.
टैक्स, किराया.
ट्रैफिक, पराया...
Sunday, September 17, 2017
ल प्रे क 08 : ईमेल
Ⓒ Govind Madhaw