pages

Pages

Saturday, February 20, 2016

100 kisses of death: episode 2- मौत का भरोसा

हाथ पैर नीला था -एकदम cyanosed. BP एकदम कम- shock में थी वो. dopamine और dexona देने पे जैसे ही होश में आई-" गोविन्द सर कहाँ हैं? गोविन्द सर को बुलाइए ना! वही बचाए थे पिछली बार हमको. सर! आप आ गए ना!...." उसने मेरा हाथ पकड़ लिया. हाथ अब तक नीले थे और पसीने से तरबतर. मैंने ऑक्सीजन मास्क को हटाने की उसकी कोशिश को नाकाम करते हुए अपनेपन वाली अधिकार भरी डांट लगायी-" एक सेकंड के लिए भी ऑक्सीजन का मास्क निकलना नहीं चाहिए." और फिर जब प्रेशर 70 mm के पार गया तो मैं बाकी मरीजों को देखने लग गया. आज मेरे हॉस्पिटल रिम्स के इमरजेंसी में जबर्दश्त भीड़ थी. सुबह 9 बजे से अब तक 60 मरीज़ भर्ती कर चूका था...जबकि बेड सिर्फ 24 हैं  हमारे पास. उसके पति ने हसरत भरी निगाह से मुझे देखा-" सर ठीक तो हो जाएगी ना. आप ही भगवान् हैं सर, बचा लीजिये. रास्ते भर आपका ही नाम लेते आ रही थी, पिछली बार की तरह इस बार भी....." आँखों में मजबूरी और दर्द की बूंदे जगह बनाने लग गयी थी. खुद को कमजोर होता देख मैंने उसे कुछ जांच की रशीद कटाने  के लिए भेज दिया.

पिछली बार यानि करीब २ महीने पहले - वो एडमिट होकर आई थी मेरे वार्ड में. 35 साल की उम्र थी, दो बेटियों की माँ, मगर अभी भी इंजेक्शन के नाम से भाग खड़ी होती थी. फेफड़े में पानी भर गया था उसके. लोकल डॉक्टर ने TB की दवा स्टार्ट तो करा दिया था मगर प्लयूरल taping यानि फेफड़े से सिरिंज से पानी निकलने का रिस्क नहीं लिया. कुछ दिन तक इस भरोसे रखे रहा की दवाई से ही पानी सुख जाएगा. मगर जब सांस की तकलीफ इतनी अधिक बढ़ गयी कि  दो कदम चलना मुश्किल तो सीधे रेफेर कर दिया. बहुत प्यार से काउंसलिंग करनी पड़ी थी उसकी- तब जाकर पानी निकलवाने के लिए तैयार हुई थी.

"milliary kochs लग रहा है सर! मगर एक महीने हो गए TB की मेडिसिन्स खाते , अब तक जरा सा भी इम्प्रूवमेंट नहीं दिख रहा है? कहीं ये MDR- यानि multi  ड्रग रेसिस्टेंट TB तो नहीं जिसपे सारी दवाइयां बेअसर है. या फिर ये lung malignancy यानि कैंसर भी हो सकता है या कोई फंगल इन्फेक्शन , मगर CT स्कैन, फ्लूइड एनालिसिस,स्पुटम टेस्ट, रिपीट x-ray सब  तो करा लिया है हमने, सब जगह तो TB के ही लक्षण हैं. ...यानि मेरा डिसीजन एकदम सही है न सर? " उस दिन मैंने कई और लोगों से राय ली थी इस केस के बारे में और फिर लगभग निश्चिंत था अपने ट्रीटमेंट प्लान के बारे में. maybe she will respond late...

रात के डेढ़ बजे जब मैं वार्ड से राउंड लेकर लौट रहा था तो लगभग निश्चिंत था- वो ICU में शिफ्ट हो गयी थी मेरे सामने. ऑक्सीजन लेवल मेन्टेन हो रहा था, BP भी इम्प्रोविंग ट्रेंड में था. तभी उसका पति बेतहाशा दौड़ा आया मेरे पास- "सर चलिए न, वो कैसे तो हो रही है? बहुत सीरियस है सर!"
वो फिर से गास्प कर रही थी यानि आखिरी वक़्त वाली उलटी लम्बी सांसे. गले से घरघराहट की आवाज़. शायद aspirate कर गयी थी. जब तक atropine, deriphyllin जैसे लाइफ सेविंग ड्रग्स लाता, उसकी सांसे रुक चुकी थी. उसके पति ने भीगे-घिसटते आवाज़ में कहना जारी रखा- " सर! तीन दिन से ऐसे ही साँस ले रही थी. मगर हम आज ही लेकर आये क्यों कि आपकी इमरजेंसी शनिवार को ही रहती है, और मुझे या इसे किसी और डॉक्टर पे भरोसा ही नहीं था. इसे किसी और वार्ड में  एडमिट नहीं होना था स...र......"

मैं अपने आप को सम्हाल नहीं पा रहा हूँ. क्यों किया था उसने मेरे ऊपर इतना भरोसा? और क्या दिया मैंने उसे इस भरोसे के बदले? दो दिन पहले आ जाती तो क्या हो जाता? किसी भी दुसरे डॉक्टर से दिखा लेती तो क्या हो जाता? कहीं सच में उसे कुछ और बिमारी तो नहीं थी जो मेरी नादानी के कारण बढती चली गयी और....कितना गलत है कम नॉलेज के साथ मरीज़ का इलाज़ करना...मगर मेडिकल साइंस में तो हर दिन कुछ न कुछ बदल जाता है और नए तथ्यों के आते ही पुराने तथ्य बेवकूफी लगने लगते है....मगर फिर भी क्या जरुरत थी मुझे उसका भरोसा जीतने  की? मुझे चुपचाप से अपना काम करना चाहिए था...ना मैं कोई रिश्ता बनाता, जैसा की मैं अपने हर मरीज़ से बना लेता हूँ, और ना ही वो मेरे भरोसे मौत की और खिसकती .... और अब मैं किस नज़र से उसके पति को बताऊंगा कि वो मर गयी है....वो बेचारा तो इतनी रात को nebulisation की रेस्पुल लेने भागा फिर रहा है बिना चप्पल के ही-क्योकि मैंने कहा था!


3 comments:

  1. As a person or by profesion completely professional bnna toh mushkil hai but hamre blood ka v bhut bda hath hai ki har kisi se rishta bna lete hain ya ye kahe toh jyada sahi rhega ki rishta bn jata hai

    ReplyDelete
  2. Being a doctor u hv 2 b strong enough so that u can control ur emotions.. Its very tough bt still u hv to.

    ReplyDelete
  3. i contradict this....when i am attached with a patient i can give a better care
    i can think of him from every aspect
    but yes ...bad results will hurt me in such situations

    ReplyDelete