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Wednesday, April 6, 2016

सुसाइड का फैशन

एक कहावत है-"दिन की शुरुआत अच्छी हो तो दिन अच्छा होता है"
मगर दिन की शुरुआत सुसाइड की खबर से हो तो...?
एक गज़ब का फैशन सा बनता जा रहा है- आत्महत्या या फिर  अंग्रेजी वाली सुसाइड करने का .

अगर मीडिया के बिकते-गिरते नज़रिए पे ज़रा सा भी यकीं कर लिया जाए तो हर आत्मघाती/सुसाइड-कर्मी(!!) को एक शहीद की तरह दिखाया जाता है. और फिर बिना सोचे समझे तुरंत ही एक विलेन ढूंढ  लिया जाता है. असली विलेन चाहे जो भी हो, मगर सुर्ख़ियों के माध्यम से कुख्यात-घृणा पात्र वो विलेन बनता है जिसपे ज्यादा  से ज्यादा TRP बटोरी जा सके. इशारा तो आप समझ ही गए होंगे. प्रेमी,यौन शोषक,पूर्व पति,लिव-इन -रिलेशनशिप वाला यार या फिर ऐसा कोई शख्स  जिसके माध्यम से हम उन सारी संभावनाओं पे खुल कर चर्चा कर सकें जो हमारी कुंठित मानसिकता के बोझ तले दबी हुई दहाड़ने को बेताब रहती है.

क्या सच में सुसाइड करने वाला व्यक्ति इतनी sympathy का हक़दार होता है जितना कि हम बिना कुछ सोचे समझे दे देते हैं?

क्या सही में ये sympathy - हमारी उस अंधी-बहरी मगर आधी गूंगी उस मानसिकता का परिचायक है जिसमे मरने के बाद हर व्यक्ति महान बन जाता है- चाहे वो जीते जी हमारे लिए परम-निन्दनीय क्यों न रहा हो. उदाहरण के तौर पे आप अपने महानतम राजनेताओं को ले सकते हैं जो मरते के साथ ही स्मारक चिन्हों में खुदकर अमर होने लग जाते हैं.

और क्या ये क्षणिक-क्षद्म-ओछी sympathy सुसाइडकर्मी को मरने के लिए और प्रेरित नहीं करता? कहीं न कहीं हर आत्मघाती के मन में यही दबी ख्वाइश रहती है कि शायद उसके मरने के बाद उसकी खामियों को भुला दिया जाएगा और उसके महानता की बातें सब जगह परोसी जायेगी. कम से कम कैंडल-मार्च या शोक सभाओं में तो जरुर उसका गुणगान किया जायेगा. और ऐसी शोक-सभाओं के भव्य -गंभीर आयोजनों का बढ़ता फैशन तो और अधिक इनके सुसाइडल tendency को प्रोत्साहित करता है.

सुना है isis के लड़ाके  भी सुसाइड बॉम्बर इसी भुलावे में बनते  हैं कि मरने के बाद जन्नत में उन्हें....और उनके परिवार को......क्या उनके लिए भी हम वही नजरिया रखते हैं?
और फिर राजस्थान की सती-प्रथा के सुसाइडल-legacy को आप किधर रखते हैं?
और क़र्ज़ में डूबे किसानो की आत्महत्या वाले पीपली-लाइव के चरित्र पे होने वाली राजनीति भी एक अलग ही फिलोसोफी दिखाती  है जिंदगी की .

और "शंघाई " फिल्म का वो बेचारा छला हुआ सुसाइडकर्मी जिसे आत्मदाह के प्रयास मात्र के लिए पैसे का लालच दिया गया था इस भरोसे के साथ कि  उसे हर हालत में बचा लिया जाएगा, मगर मीडिया और एडवेंचर देखने के पिपासु आँखों के सामने उसे जल कर पकने  के लिए छोड़ दिया जाता है अपनी पोलटिकल लिट्टी के लिए चोखा-भरता  सेंकने के लिए.

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