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Monday, May 29, 2017

लुप्तप्राय गधों की मीटिंग



गधों ने अपनी सभा बुलाई.
विलुप्त होने के कगार पे पहुंचे इस पशुकुलश्रेष्ठ प्रजाति ने अपने विदर्भ समिति के अध्यक्ष से आग्रह किया कि वे दो शब्द कहें.

महाशय ने अपनी मजबूत कही  जाने वाली गर्दन को हिलाते हुए दुलत्ती मारने की प्रैक्टिस की और अश्रुमिश्रित शब्दों की वर्षा प्रारंभ की-
" साजिश है ये इंसानों की. अच्छे भले हम जंगल और बस्ती के बीच वाले स्थान में विचरण करते थे, कच्छ के रण में शोभित होते थे, मुफ्त में घास-पानी का लालच देकर इंसानों ने हमें गुलाम बनाया. हम तो ठहरे गधे, खुद तो गुलाम हुए ही, अपनी पूरी बिरादरी और फिर पूरी पीढ़ी को ही गुलाम बनवा दिया. "

मण्डली में बैठे एक जवान गधे ने नेता के पश्चाताप पर आश्चर्य जताया, उसे तो पता भी नहीं था कि गधे कभी आज़ाद जानवर भी हुआ करते थे, उसने तो धोबी के कोड़े खाने और बोझ ढोने को ही अपनी नियति मान ली थी.

अध्यक्ष रूपी वृद्ध ने अपने इतिहास की गलतियों को जगजाहिर करना जारी रखा-
" हमने अपनी गलतियों से कुछ नहीं सीखा. खुद गुलाम हुए, पूरी जाती को गुलाम बनाया, जो आज़ाद बचे थे उनके शिकार करने में अपने मालिक की मदद भी की. मगर इंसानों से बड़ा स्वार्थी इस दुनिया में कोई नहीं. जल्लाद इंसानों को हमारी आज़ादी ख़त्म कर के सुकून नहीं मिला तो हमारी वंशावली को भी चपेट में ले लिया. "

"वो कैसे!" एक बालक गधे ने नींद तोड़ते हुए फेसबुक अपडेट किया.

नयी पीढ़ी की भागीदारी से आंशिक ख़ुशी हासिल करते हुए नेता ने उसकी तरफ देखते हुए जेनोसाइड का रहस्योद्घाटन करना प्रारंभ किया-
"वंशवृद्धि के लिए पहले हमारे मालिक हमें खुले मैदान में छोड़ देते थे जहाँ स्वच्छंद वातावरण में हमारी सुंदरियां स्वयंवर का आयोजन करती थी, प्यार-मुहब्बत के माहौल में हम संसर्ग सुख को प्राप्त करते थे. हां, जंगलों की तरह अपने संतान की देखभाल का सौभाग्य तो हमें नहीं मिलता था, मगर हमारी गधियों पे सिर्फ हम गधो का हक था."
"तो क्या अब हमारी गधियों पे किसी और का हक हो गया?" ड्यूड एटीच्युड वाले लोफर नवजवान गधे की नींद खुली.

नेता अब अपने सर्वनाश की गाथा खुद कहने में असमर्थ हो रहा था, उसने महिला(गधी) मुक्ति मोर्चा की अध्यक्षा से आग्रह किया और खुद वहीँ पे लोट गया.
अत्यधिक प्रजनन पीड़ा से गुजरने के बाद एकदम काल के द्वार पे खड़ी मोहतरमा ने पश्चाताप को सार्वजनिक किया-
"उस दिन भी हम सज संवर कर स्वयंवर के लिए रवाना हो रहे थे, मगर राश्ते में एक जगह मुलायम घासों के ढेर ने हमें मोहित कर लिया. हम नरो के झुण्ड से अलग हो गए. मगर वह हमारी पीढ़ी के लिए युगांतकारी गलती थी. दरअसल वो घासों का ढेर हमारे लिए नहीं बल्कि पश्चिम से आये रेगिस्तानी इंसानों के काफिलों में शामिल घोड़ों के लिए था. महीनो से घर से दूर रहे घोड़े अपनी घोड़ियों के विरह में दुखी थे. मगर क्या पर्सनालिटी थी उनकी, गले के पास सुन्दर बाल, लम्बी संवरी हुई पूंछ, मदमस्त करने वाली चाल. हम में से एक गधी का दिल फिसल गया."

महोदया की इन  बात से जल भुन कर राख होते बुजुर्ग गधों ने अपनी कद काठी का मजाक बनना बर्दाश्त करते हुए शान्ति बनाये रखने में सहयोग किया.
"रेगिस्तानी कबिले के मुसाफिर वहीँ के गावं की एक औरत को उठा कर ले आये थे, वे उनके साथ जबरदस्ती करने लगे. हमें भाग जाना चाहिए था मगर हम अभी भी घोड़ो के रूप-अदा पर मोहित थे, होश ही नहीं रहा कि कब कुछ विदेशी घोड़ों ने अपनी हवस का निशाना हमें बना लिया है."

क्रोधित मगर मजबूर सेनापति की भूमिका वाले लंगड़े गधे ने उठकर कहा-
"हम तो वापस आये थे तुमलोगों को बचाने, मगर कुछ गधियो को प्यार हो गया था घोड़ो से. जब घर में ही विभीषण हो तो हार तो होनी ही थी. मेरे बड़े भाई को वीर गति की प्राप्ति हुई. मैंने अपनी टांग गंवाई. कुछ गधियों का अपहरण हो गया , वे रेगिस्तान चली गई. मगर हम कुछ गधियों को बचा कर लाने में कामयाब रहे."

मूर्ख जनता उसकी विजयगाथा पे वाहवाह करने लगी तो क्रोधित अध्यक्ष उठ खड़ा हुआ!
"बात इतने पे ख़त्म होती तो कोई बात नहीं थी. उस वर्ष स्वयंवर का कार्यक्रम रद्द हो गया. मगर कुछ गधियाँ गर्भवती हो गईं. हमने गर्भपात के आप्शन पर विचार किया मगर दयाभिभूत होकर एक और बड़ी गलती कर दी. उन्होंने बच्चो को जन्म दिया. बच्चे हृष्टपुष्ट थे. प्रसव पीड़ा बहुत ज्यादा हुई. मादा की सेवा में वे नर(गधे) लगे थे जिनका हक मरा गया था, जिनके घर की इज्ज़त लुटी गयी थी, सहिष्णुता की पराकाष्ठा पर थे हम. मगर हाय! ये बच्चे मंदबुद्धि निकले. देखने में लुभावने थे जरुर, कुछ चितकबरे भी थे. कद काठी में हमसे ऊँचे भी, मगर पेट से लालची. जहां घास दिखे वहीँ घिसक जाते, समाज की कोई चिंता नहीं. सबसे ख़राब कि उन्हें हमउम्र गधियों में कोई इंटरेस्ट नहीं था. और शीघ्र ही हमें पता चला कि ये सब के सब नपुंसक थे. "
आश्चर्यचकित जनता आँखे फाड़ सुन रही थी.

एक मॉडर्न गधी ने सवाल दागा-"मगर पीढ़ी आगे कैसे बढ़ी?आपकी कहानी में पूर्वाग्रह के भाव हैं, झूठ बोलते हैं आप , कम्युनल बना रहे हैं हमें!"
अपनी भावी पीढ़ी के मूर्ख विचारों से घायल अध्यक्ष ने उसकी जिज्ञासा शांत की-
"नपुंसक पीढ़ी ने हमें क्षणिक ख़ुशी दी. चलो बलात्कारियों की पीढ़ी आगे नहीं बढ़ेगी. हम पुनः जीन की शुद्धता को जारी रख पायेंगे. मगर इंसानों ने हमें फिर से धोखा दिया."
"फिर कैसे?क्या उन्होंने हमें मारना शुरू कर दिया क्योंकि हम अपवित्र हो गए थे?" अत्यधिक धार्मिक गधी ने घूँघट हटा कर पूछा.
"मार देते तो अच्छा था, कम से कम ये दिन तो नही देखना पड़ता." सेनापति ने घुटन महसूस करते हुए कहा.
अध्यक्षा ने आगे की कमान को सम्हाला-
"हमारे पुरुष विरादरी ने नपुंसक गधो के साथ इतना भेदभाव किया कि वे इंसानों के परमभक्त हो गए. इंसानों को शीघ्र ही ज्ञान हो गया था कि ये नपुंसक गधे शरीर से मजबूत मगर दिमाग के पैदल हैं, यानी बोझा ढोने के उस्ताद बिना किसी शिकायत के. इंसानों ने इन्हें खच्चर का नाम दिया. और तब से हर साल स्वयंवर के ठीक पहले हमारी आधी सुन्दरियों को इनसान उठा कर ले जाते हैं और हवसी घोड़ो के हवाले कर देते हैं. बची खुची, छंटी -कटी रिजेक्टेड आइटम्स से ही हम गधो का काम चलता है. इस क्रम में हम अच्छे ब्रीड को जन्म नहीं दे पाते. आधे नर गधों को तो ऐसे ही चांस नही मिलता तो वे समलैंगिक हो गए हैं. अब  नर गधो से इंसानों को कोई फायदा नहीं, उन्हें तो बस सुन्दर गधियाँ चाहिए और चाहिए खच्चर. और इस प्रकार से हम संख्या में हर साल कम होते चले गए. आज देश में गिनती के 689 गधे बचे हैं."
"तो क्या हम रेड डाटा बुक में शामिल हो गए, विलुप्तप्राय प्राणियों की लिस्ट में ?" जीनियस बच्चे ने इसमें भी अपनी गौरव गाथा खोजने की कोशिश की.
"हमारी किस्मत में प्रसिद्धि के साथ मौत भी नहीं लिखी हुई है. हम कौन से डायनासोर हैं जो हम पे कोई फिल्म बने और हम फेमस हों. ना ही हम शेरो की तरह आकर्षक खूंखार हैं जिन्हें आदमी अपनी जीत की निशानी के लिए जिन्दा रखे. हम तो लालची सीधे सादे मेहनती जानवर ठहरे जो अपनी निशानी भी दूसरो की दया पर जिन्दा रख पाए हैं."
"तो क्या किसी धार्मिक अनुष्ठान में भी हमारा कोई जिक्र नहीं है?" खोजी पत्रकार गधे ने अपनी ही बिरादरी पे वार कर के नाम कमाने की कला का परिचय दिया.
"अच्छा हुआ जो धर्म से विमुख हुए. वरना बीच सड़क पे काट दिए जाते! गायों का हाल देखा है तुमने?" अभी अभी शहर से लौटे खच्चर का भेष धारे पूंसक गधे ने अपनी ताजा खबर पेश की. धर्म में सम्मिलित नहीं होने के दाग पे भी सबने राहत की साँस ली. इसे कहते हैं आशावादी सोच. घोर आशावादी!

"मगर जेनोसाइड की प्रक्रिया अभी जारी है. अब घोड़ों को भी कोई नहीं पूछता सिवाय सेना के परेड के और जुए वाली घुडदौड के. खच्चर भी दिमाग से पैदल होने के कारण मालवाहक के अलावा किसी और काम में अपनी उपयोगिता नहीं साबित कर पाए. अब तो रेगिस्तानी तेल से चलने वाली पहिये वाली गाडी भी आ गयी है, इंसानों ने काफी तरक्की कर ली है. पहाड़ चढ़ने के लिए भी उड़ने वाली गाड़ियाँ हैं उनके पास." शहर से लौटा मुखबिर खच्चर का भेषधारी गधा बता रहा था.
" तो अब हम भी उड़ने वाली गाड़ियों में लादे जायेंगे?" मासूम बच्चे ने कल्पना लोक में खोते हुए अपनी माँ से पूछा.
"उसमे सिर्फ कुत्तो को चढ़ने की इज़ाज़त है. वे जानते हैं कि कब दुम हिलाना है और कब भौंकना है. स्वाभिमानी और मूर्ख जानवरों को ये सब नसीब नहीं.
तो भाइयों और घोड़ों की हो चुकी गधियों! हम अपने सर्वनाश के करीब हैं. क्या कोई उपाय है आपके पास कि हम अपनी स्पीशीज को धरती से गायब होने से बचा लें?" अध्यक्ष ने उम्मीद की थी कि कोई जोशीला जवान आगे आएगा और ये जिम्मेदारी लेगा.
मगर तभी बगल से घुड़सवार का एक काफिला गुजरा. आधी गधियाँ लाइनखोरी करती हुई उनके पीछे चल उठी. आत्महत्या के लिए जा रहे एक किसान ने अपनी अर्थी का सामान एक गधे की पीठ पे बांधना शुरू किया. बोझ के डर  से बाकी गधे मीटिंग को बीच में ही छोड़ रफूचक्कर हो गए.
लंगड़े सेनापति, बूढ़े नेता और मरणासन्न महोदया जीवन के आखिरी पड़ाव में ज्ञान प्राप्ति के अवसाद से और दुखी होकर पागलखाने की तरफ चलने लगे जहाँ शायद मुफ्त में कुछ घास-फूस मिल जाए.




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