जैसे जैसे उम्र बढती है ,
रिश्तो की फेहरिस्त लम्बी होती जाती है ...
और फिर बंट जाते है हमारे 24 घंटे छोटे और छोटे टूकडो मे इन्ही रिश्तो के बीच .
सबको खुद पे बराबर का हक कहां दे पाता है कोई ?
कुछ अनायास ही छूटते हैं और कुछ जान बुझ कर भूलाये जाते हैं
और कुछ ....
मगर लिस्ट लम्बी ही होती जाती है .
अब इसी 24 घंटे
और बंटवारे के दर्मयान जो चीज सबसे पीछे छूट जाती हैं वो हैं खुद से खुद की
गुफतगु.
और फिर आखिरी पडाव पे थम जाता है तनहाई का सफर
और दूर दिवार पे सजती रहती हैं ever ग्रोविंग रिश्तो की फेहरिस्त !!!