और हिंदी दिवस गुज़र गया
गुज़र गया एक बोझ जैसे
गुजर गयी दकियानूसी खयालो की रश्म अदायगी
कल से फिर वही फैशन परस्ती में किलबिलाते से अधखिले लफ्ज़
और अगले साल तक के लिए
गुज़र गया एक बोझ जैसे
गुजर गयी दकियानूसी खयालो की रश्म अदायगी
कल से फिर वही फैशन परस्ती में किलबिलाते से अधखिले लफ्ज़
और अगले साल तक के लिए