Sunday, May 24, 2020

रेस्टलेस लेग सिंड्रोम (Restless Legs Syndrome)

आराम करना सब को पसंद है. मगर एक मर्ज ऐसा जो आपको आराम ही नहीं करने देता. वो मजबूर करता है कि आपके कदम चलते रहें हमेशा.

एक तरह से सोचें तो ये तो बहुत अच्छी बात लगेगी कि बड़ी लाजवाब बीमारी है, जो आपकी क्रियाशीलता को बढ़ाये रखता है, आपको एक्टिव रखने के लिए प्रेरित करता है. मगर बात दरअसल दूसरी है.


इस मर्ज में आदमी जब भी विश्राम कर रहा होता है, उसके पैरों में बेचैनी महसूस होने लगती है. ना सिर्फ बेचैनी, बल्कि साथ ही एक तीव्र इच्छा होती है पैरों को हिलाते रहने की.

अक्सर लोग बेचैनी में पैर हिलाने लग जाते हैं या फिर उठ कर दो चार कदम टहलने लग जाते हैं. अक्सर ऐसा करने से उन्हें कुछ पल के लिए बेचैनी से राहत मिल जाती है. मगर आश्जर्चजनक रूप से दिन भर चलते फिरते रहने या काम करते समय ये परेशानी ना के बराबर महसूस होती है. पैरों में आराम के वक्त होने वाली इस परेशानी को #रेस्टलेसलेगसिंड्रोम (#RestlessLegSyndrome, #RLS) कहा जाता है.



RLS में आदमी ना सिर्फ बेचैन रहता है, बल्कि ठीक से नींद भी नहीं आती, घंटो करवट बदलते रहने के बावजूद. नींद आ भी जाये तो जल्दी टूट जाती है. सुबह जागने पर भी अच्छी नींद के उपरांत मिलने वाली संतुष्टि का अहसास नहीं होता है. नतीजन दिन भर की थकावट और कार्यकुशलता का ह्रास.


एक सर्वे के अनुसार भारत में लगभग हर 100 में से तीन-चार लोगों को यह समस्या होती है. अक्सर एक ही परिवार में कई-कई लोग इस समस्सा से जूझ रहे होते हैं. मगर बीमारी को ठीक से नहीं समझने के कारण लोग इसे थकावट का नाम देकर नजर अंदाज करते रहते हैं. कहीं कहीं घर के बुजुर्ग बच्चों से मालिश करवाते रहते हैं. कुछ लोग तो पैरों में तौलिया बांध कर सोते हैं. कुछ रात भर पैर फेंकते रहते हैं, जिससे साथ सोने वाले को भारी परेशानी होती है. अक्सर लोग पैरों के ऊपर तकिया या मोटी रजाई रखकर सोने की कोशिश करते हैं. कुछ लोग इसे गठिया या नस की लाइलाज बीमारी सोचकर नीम हकीमों के चक्कर में परेशान होते रहते हैं.


खासकर के #LOCKDOWN के समय जब कि लगभग हर आदमी अपने घर में आराम करने को मजबूर है, बहुत सारे लोग इस समस्या से परेशान हो रहे हैं.


अब इस समस्या को गंभीर बीमारी कहना भी ठीक नहीं. क्योंकि ना तो यह आपके स्वास्थ्य पर सीधे तौर पर कोई असर डालती है, न ही यह जानलेवा है. ना तो यह संक्रामक रोगों की तरह कोई छूत की बीमारी है. ना ही किसी परहेज, व्यायाम या ऑपरेशन से इसका जड़ से इलाज/उन्मूलन/ क्योर/ मुक्ति संभव है.


सबसे जरुरी है इस समस्या को अच्छे से समझना, जिसके अनेक फायदे हैं. पहली बात, सही पहचान होने के बाद लोग इधर उधर की फालतू चीजों में अपना समय और पैसा बर्बाद नहीं करेंगे. दूसरा सही उपचार से न सिर्फ समस्या से राहत मिलती है, दिन-प्रतिदिन के जीवन पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

सोचिये कि कोई आदमी जो पिछले कुछ महीनो या सालों से सही नींद के अभाव में चिडचिडा हो रखा हो, उपचार से उसका व्यवहार ही बदल जाए. फिर तो ब्लड प्रेशर, सुगर, कोलेस्ट्रॉल, एंग्जायटी, थकावट, ध्यान केन्द्रित ना कर पाने की समस्या, कमजोर यादाश्त और ऐसे ही कई व्युत्पन्न समस्याओं से निजात भी संभव है.


तो कैसे पहचानें कि कोई आदमी इस समस्या से जूझ रहा हो? वैसे तो यह काम एक अच्छे चिकित्सक के द्वारा होना चाहिए. मगर अभी जबकि सारे अस्पताल और स्वास्थ्यकर्मी कोरोना से लड़ रहे हैं, तो सब के लिए अस्पताल जाना संभव नहीं है. और बेहतर यही है कि लोग जितना हो सके घर में रहें. ऐसी परिस्थिति में ई-मेडिसिन या टेलीमेडिसिन एक बेहतर विकल्प के तौर पर उभर कर आया है.


अगर आप या आपके आसपास का कोई व्यक्ति पैरों में बेचैनी या दर्द की समस्या से परेशान हो जो विश्राम के समय बढ़ जाती है, तो संभव है उन्हें रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम हो. ऐसे लोगों के लिए पेश है यह #लिंक जिसपर क्लिक कर के कुछ सवालों के जवाब देना है. आपके जवाबों के द्वारा यह तय हो जाएगा कि आपको यह समस्या है या नहीं.

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