Monday, November 23, 2015

100 kisses of death: episode01- "आधे लाश की मुक्ति"


अजीब तमाशा है यहाँ ? सुबह से हम परेशान खुद  से ट्राली खींचते घूम रहे हैं, कभी ENT वार्ड, कभी ओर्थो  तो कभी न्यूरो वार्ड! अरे कम से कम एडमिट तो कर लिया जाता हमारे पापा को. इनके साथ साथ घूमते तो हम खुद ही मर जायेंगे. क्या इंसानियत मर गयी है सब की? कुछ इलाज़ तो स्टार्ट  हो जाता फिर जांच वांच  करा के फैसला होते रहता कि किस विभाग में भरती करा के इलाज़ होना है, किस टाइप की बिमारी है?”
गुस्से से मिक्स्ड विवशता का बोझ उठाये उस बेटे के चेहरे को देख कर मुझसे रहा नहीं गया.
ओर्थो ने एडमिट करने से मना कर दिया...जबकि ट्रॉमेटिक पराप्लेजिया का केस था - यानि चोट के कारन नाभी  के नीचे  का हिस्सा बेजान. २६ अक्टूबर को रोड एक्सीडेंट हुआ था इनका. तब से सदर में एडमिट थे . ठीक ठाक ही तो बात कर रहे थे अभी तीन दिन पहले तक. फिर अचानक बात करना बंद कर के लम्बी लम्बी सांसे लेने लगे. वहां के डॉक्टर तो हमें ही ही डांट कर भगा देते थे, जब भी हम थोडा पानी सेलाइन वगैरह चढा देने की बात करते थे तो.वह साथ आये चाचा से बतिया रहा था,जब तक कि मैं उसके एडमिशन पेपर बना रहा था.
रिम्स में मेडिसिन वार्ड में भर्ती कराने के साथ ही उनके चेहरे पे असीम संतुष्टि के भाव मचलने लगे थे. और उसके  बाद सुबह शाम हाजिरी बनाने आते थे उसके घरवाले. जैसे कोई रोस्टर बन गया हो...आज का दिन फुवा का, आज बहु का, आज पोते का तो हर दुसरे दिन इसी बेटे का. बाकी टाइम सिरहाने रखी दवाई की पोटली से ही मरीज़ का हाल चल पूछ लिया करता था मैं राउंड देने के वक़्त.
और उस दिन की बारी थी शराबी किरायेदार की. ryles tube ब्लाक हो गयी थी शायद. भूखे आत्मा को लम्बी सांसे लेता देख उससे रहा नहीं गया और मुंह से मौत का निवाला पिला  दिया.
मौत के बाद बेटा  और बहु लगभग निश्चिंत थे. मगर समाज की रश्म अदायगी के लिए मौत का कारण ढूंढने  डॉक्टर के पास हमलावार लफ्ज लेकर पहुंचे. ठीक इलाज़ नहीं किया आपने ....
डॉक्टर ने अपनी जान छुडाने के लिए ब्लड रिपोर्ट में से किडनी फेलियर की बात जैसे ही निकाली, उन्हें मानो नया हथियार मिल गया हो-अब फुवा की औकात जो इलज़ाम लगाए कि  हमने इलाज़ नहीं करवाया. धन्यवाद डॉक्टर साहब! आपने बहुत मदद की हमारी...अब तो जैसे हमलवार लफ्ज अपनी  दिशा पलट कर फुवा की तरफ बढ़ने लगे थे.
अपने करतूत से अनजान शराबी किरायेदार कफ़न के इंतज़ाम में लगा हुआ कहता जा रहा था- हमारे ही हाथों से पानी पीकर बाबा ने अपनी आखिरी सांस ली, शायद मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे. नसीब में बेटे के हाथ का पानी भी नहीं था.

मरी हुई आत्मा जाते जाते जैसे लाश के चेहरे पे अनंत शान्ति का भाव छोड़ गयी थी.सच में मुक्ति मिल गयी थी शायद, वरना आधे मरे शारीर का बोझ उनकी आत्मा के लिए ढो पाना तो ..........


खैर ये था मेरे डेथ रजिस्टर का पहला पन्ना. 

No comments:

Post a Comment