अभी ३६ घंटे की लगातार ड्यूटी कर के लौटा था. थके मन ने खाने की जगह सोने को ताबज्जोह दी. बिखरे पड़े कमरे में सोने के लिए जगह बनाता लुढका तो होश ही नहीं रहा की मोबाइल तब से साइलेंट मोड में ही पडा हुआ है. कुछ देर बाद जब आँख खोलने के लायक हुआ तो अँधेरे कमरे में जो पहली जरुरत महसूस हुई वो मोबाइल के टोर्च वाली रौशनी की. ओह! 18 मिस्स्काल्ल्स. और 2 मेसेज भी. और ढेर सारे whatsapp के messages और एक फेसबुक का चैट-विंडो.
पहली जिज्ञासा missed calls की थी. मम्मी के दो थे, उन्हें आखिरी में कॉल बैक करूँगा. 4 मेरे दोस्तों के थे जिन्होंने गेट-together प्लान किया था. सब पहुँच गए थे मगर मैं....खैर अब इन्हें बाद में समझाया जाएगा. 5 - 6 unknown नंबर्स थे. और बाकी मेरे मरीजों के. शुरुआत उन्ही से की. कुछ ठीक थे, कुछ गड़बड़. कुछ को बुलवा लिया कुछ को यथासंभव फ़ोन पे ही सलाह दे दी. हालाँकि मरीजों को मोबाइल नंबर देना -पता नहीं कितना सही है. कुछ तो आपकी मजबूरी समझते हैं, समय देखकर कॉल करते हैं वो भी बहुत जरुरी हो तो. मगर अधिकतर तो बिना सोचे समझे कभी भी फोन कर देते हैं. जैसे-
"...आज घर में मटन बना था तो पापा को खिला दे क्या? "
"....आज न मेरी बेटी को बुखार जैसा लग रहा है,क्या करें दिखा दे डॉक्टर से या एक दो दिन इंतज़ार कर ले?आप मुझे नहीं पहचाने,मैं अपनी साली को लेकर दिखाने आया था?"
"....अच्छा आज रांची बंद है क्या? कुछ काम से रांची आना था तो आप रांची में थे न तो सोचे की आप से ही पूछ लें?"
".....अच्छा डॉक्टर साहब आप देखे थे मेरे जीजाजी को तो हम सोच रहे थे की एकबार उनको एम्स में दिखा लें, क्या सलाह रहेगा आपका. मान लीजिये कि आप तो देख हि रहे हैं मगर एक संतुष्टि के लिए.?"
"....वो जो मेरी पडोसी थे जिनको कि हमलोग प्राइवेट हॉस्पिटल में ले गए थे दिखाने के लिए,आपके हॉस्पिटल में AC नहीं था न इसलिए, तो वो वाले डॉक्टर साहेब तो विदेश गए हुए हैं, अभी उनको थोडा सा लूज़ मोशन हो गया है तो सोचे की आपही से पुच लेते हैं,आखिर आपको भी तो इतना नॉलेज तो होगा ही न. न हो तो किसी सीनियर डॉक्टर का नाम बताइए न उन्ही से दिखा लेते हैं?...... "
...
...
और भी इसी तरह के कई वाहियात सी बातें. भाई सरकार हमें फ़ोन उठाने का पैसा थोड़े न देती है. और इस सरकारी अस्पताल में हम बिना फीस के मरीज़ देखते हैं, सांस लेने के लिए भी घडी देखते हैं, उसमे ऐसे फ़ोन कॉल्स...और न उठा पाए तो रोबदार नाराज़गी भी.
पहली जिज्ञासा missed calls की थी. मम्मी के दो थे, उन्हें आखिरी में कॉल बैक करूँगा. 4 मेरे दोस्तों के थे जिन्होंने गेट-together प्लान किया था. सब पहुँच गए थे मगर मैं....खैर अब इन्हें बाद में समझाया जाएगा. 5 - 6 unknown नंबर्स थे. और बाकी मेरे मरीजों के. शुरुआत उन्ही से की. कुछ ठीक थे, कुछ गड़बड़. कुछ को बुलवा लिया कुछ को यथासंभव फ़ोन पे ही सलाह दे दी. हालाँकि मरीजों को मोबाइल नंबर देना -पता नहीं कितना सही है. कुछ तो आपकी मजबूरी समझते हैं, समय देखकर कॉल करते हैं वो भी बहुत जरुरी हो तो. मगर अधिकतर तो बिना सोचे समझे कभी भी फोन कर देते हैं. जैसे-
"...आज घर में मटन बना था तो पापा को खिला दे क्या? "
"....आज न मेरी बेटी को बुखार जैसा लग रहा है,क्या करें दिखा दे डॉक्टर से या एक दो दिन इंतज़ार कर ले?आप मुझे नहीं पहचाने,मैं अपनी साली को लेकर दिखाने आया था?"
"....अच्छा आज रांची बंद है क्या? कुछ काम से रांची आना था तो आप रांची में थे न तो सोचे की आप से ही पूछ लें?"
".....अच्छा डॉक्टर साहब आप देखे थे मेरे जीजाजी को तो हम सोच रहे थे की एकबार उनको एम्स में दिखा लें, क्या सलाह रहेगा आपका. मान लीजिये कि आप तो देख हि रहे हैं मगर एक संतुष्टि के लिए.?"
"....वो जो मेरी पडोसी थे जिनको कि हमलोग प्राइवेट हॉस्पिटल में ले गए थे दिखाने के लिए,आपके हॉस्पिटल में AC नहीं था न इसलिए, तो वो वाले डॉक्टर साहेब तो विदेश गए हुए हैं, अभी उनको थोडा सा लूज़ मोशन हो गया है तो सोचे की आपही से पुच लेते हैं,आखिर आपको भी तो इतना नॉलेज तो होगा ही न. न हो तो किसी सीनियर डॉक्टर का नाम बताइए न उन्ही से दिखा लेते हैं?...... "
...
...
और भी इसी तरह के कई वाहियात सी बातें. भाई सरकार हमें फ़ोन उठाने का पैसा थोड़े न देती है. और इस सरकारी अस्पताल में हम बिना फीस के मरीज़ देखते हैं, सांस लेने के लिए भी घडी देखते हैं, उसमे ऐसे फ़ोन कॉल्स...और न उठा पाए तो रोबदार नाराज़गी भी.