“और कितने दिन
जिन्दा रहेंगे आप? सारे शौक तो पूरे कर लिए. पोते का मुंह, खुद के बनाये मकान पर
नेमप्लेट, पत्नी का सुहागन रहते स्वर्ग सिधारना सब कुछ तो देख लिया आपने. यहाँ
अस्पताल के बिस्तर पर बेहोश पड़े-पड़े जाने कौन सी जिंदगी जी रहे हैं आप.”- चार्ट
में डेढ़ लीटर का नोट डाल पेशाब की थैली बदलता हुआ वो बुद्बुदा रहा था.
इतने दिनों में अस्पताल का यह कमरा भी तो घर जैसा ही लगने लगा था उसे. उसने पुरानी नौकरी छोड़ अस्पताल के रास्ते में पड़ने वाले नए ऑफिस को ज्वाइन कर लिया था. रोज़ शाम जब घर लौट दस्तक देता तो दरवाज़ा खोलती पत्नी की आँखे एक ही सवाल पूछती. मगर जवाब में वह उसके खाली हो गए कान की तरफ झांक नज़रें झुका लेता.
“सच कहूँ तो यह मेरी मर्ज़ी के खिलाफ था, मगर पडोसी और रिश्तेदार कहते थे तो आज घर में प्रार्थना का आयोजन हुआ, आपके जल्दी ठीक हो जाने के लिए. उसी दरम्यान हॉस्पिटल से फ़ोन आया. सब खुसर-फुसर करने लगे. कोई कह रहा था कि चलो अच्छा हुआ, मुक्ति मिल गयी! कोई मुझसे सहानुभूति तो कोई मेरे पुत्रधर्म की प्रशंसा करने लगा था. मगर नर्स ने बताया कि आपने आँखे खोली थी और मेरा नाम पुकारा था. लोगों की दोगली बातों से होने वाली आपकी ऐसी बेईज्ज़ती मुझसे बर्दाश्त नहीं होती अब.”- बूढ़े शरीर को करवट लगा बेडसोर को पाउडर से सहलाता हुआ वह बोले जा रहा था. बंद आँखों के किनारों में जमी मोमनुमा अश्रुकणों को हटाने के बाद वह रुग्ण पैरों की मालिश करने लगा.
“आपकी ही तरह जीनियस आपके पोते ने स्कूल में टॉप किया है! आज रिजल्ट लेने जाना है उसके स्कूल. हो सकता है देर भी हो जाए.”- चेहरे पर बैठने की कोशिश में लगी मक्खी को भगा उसने खिड़की के परदे को ठीक किया और बेहोश शरीर को उठा बेडशीट-कम्बल सँवारने में नर्स का हाँथ बंटाता हुआ कहने लगा था.
जाने कितने महीनो के बाद उसने पत्नी के चेहरे पर ख़ुशी के भाव देखे थे. शहर से दूर तालाब किनारे के रेस्तरां में बैठ तीनों मुस्कुराते हुए आनंदित थे. सेल्फी के लिए पोज देते हुए उसने पत्नी के कंधे पे हाथ रखा, दोनों की निगाहें मिली, पत्नी ने कंधे पे बढ़ते दबाव में छुपे प्रेम को महसूस किया. बेटे ने कैमरा पकड़ दूर से इनकी फोटो खींचने का बहाना बनाया. मुस्कराहट की लकीर शरारत भरी छेड़खानी का रंग ओढने लगी. शाम की तिरछी किरणों के संग तालाब की सतह पर असंख्य सुन्दर भावनाओं की लहर तैरती हुई दिख जा रही थी. बेफिक्री के वक़्त हमेशा की तरह तेज़ी से गुजरने लगे. तभी मोबाइल लेकर बेटा उसके पास आया, हॉस्पिटल का कॉल था.
“आज 11 बजे आपके पिताजी पुरे होश में आ गए थे. उसने नर्स से बातचीत की, अपनी दिवंगत पत्नी की तस्वीर को चूमने में मदद मांगी और यह कह कर लेटे कि अगर उनकी मौत होती है, तो यह खबर परिवारवालों को बिलकुल नहीं दी जाए, जब फुर्सत मिलेगी तब वे लोग खुद आकर बॉडी ले जायेंगे. लेटने के 20 मिनट बाद उनके शरीर में कम्पन हुआ, मॉनिटर ने बताया कि उनकी धड़कन अचानक से बहुत तेज़ हुई और खुद में उलझ कर रुक गयी. डॉक्टर ने वेंट्रिकुलर टैकीकार्डिया से कार्डियक अरेस्ट होने की पुष्टि की.”
वह फिर से बुदबुदाया- “पिताजी की यह आखिरी ख्वाईश भी पूरी नहीं हो पाई बाकि ख्वाइशों की तरह.”
Ⓒ Govind Madhaw