“मैं दो दिन के लिए
मुंबई आ रहा हूँ. अगर तुम ये ईमेल पढ़ रही हो तो रिप्लाई करना.”
वाह! 4 साल बाद याद
आई जनाब को. मगर इन 4 सालों में तो कितना कुछ बदल गया था. छूट गया था उसका छोटा
शहर. पीछे रह गयी थी उसकी कॉलेज की यादें और समीर की कविताओं की महफ़िल. तब उसकी
सहेलियां चिढाती थी अन्ताक्षरी के हर रोमांटिक गाने पर. हया और गुदगुदी के बीच उसे
निहारती समीर की निगाहों की अलग ही सी दुनिया होती थी.
पुरे पैराग्राफ वाले
मेसेज में जो भाव उभर कर आते हैं, वो शॉर्टकट वाले वर्ड्स में कहाँ. उसने टाइप
करना जारी रखा. याद आया वो पल जब समीर ने कैफ़े में साथ बैठ ईमेल ID बना दिया था. ID
बनाने में माथा पच्ची इतनी जैसे बच्चे का नाम रखना हो. जब समीर ने उसे प्रोपोज
किया, धड़कन को बेतहाशा भागते हुए महसूस किया था उसने. मगर इस पल की तैयारी तो जाने
कब से किये जा रही थी वो. खुद पे कण्ट्रोल रख बेरुखी दिखाना और ये सोचते हुए बढ़
जाना- “कल तो पक्का एक्सेप्ट कर लुंगी मगर आज रात इस शायर को तड़पना होगा.”
मगर घर आते ही अब्बू
का फरमान- ‘‘बेटे आपकी शादी तय हो गयी है. कल से कॉलेज बंद.”
“मुझे समीर को
रिप्लाई करना चाहिए? शादी शुदा हूँ अब!”
मगर कितनी अकेली थी
वह यहाँ? चार सालों में काम वाली बाई और अपार्टमेंट गार्ड की बूढी माँ के अलावा
किसी और से जुड़ भी नहीं पायी. हस्बैंड भी दिन भर ऑफिस और घर आते ही न्यूज़ चैनल में
बिजी. ऊपर से बात बात में टोकना- “गंवारों की तरह कार की सीट पे पालथी मारकर मत
बैठो! उफ़ ऐसे पकड़ो कांटे चम्मच!...यहाँ पार्लर में लड़के ही बाल काटेंगे...!” आजतक ठीक से बैठ कर बात तक नहीं की थी दोनों ने.
“मगर एक दोस्त के नाते
तो ....पर वो सिर्फ दोस्त तो नहीं? मैं भी तो पसंद करती थी न उसे! लेकिन एक बार
बात करने में क्या हर्ज़ है? फिर ये सिलसिला ना थमा तो?” वह आईने में खुद की आँखों
में झांककर जवाब ढूंढ ही रही थी कि नीचे से कार की आवाज़ आई. कलेजा धक् से किया
उसका और एक ही झटके में उसने मेल डिलीट कर दिया. और उसने डिलीट कर दिया था समीर का
कांटेक्ट भी.
हाथ में पानी का
गिलास थामे, guilt के साथ नज़रें झुकाए दरवाजे के पास खड़ी हुई थी कि पति ने इशारा
करते हुए कहा-
“मीट माई न्यू वाइफ.
आज से यहीं रहेगी”
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Ⓒ Govind Madhaw
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