मई की तपिश में ये हसीन बारिश.
सलाखें तोड़ती आवारगी की ख्वाहिश.
ताज़ा अजनबी दर्द मुस्कान में लिपट रहा.
फुर्सत भी नमी ओढ़े मुझ में सिमट रहा.
आशिकी के बादल बरसने को बेताब हैं .
मगर माशूका कौन? ये किसका शबाब है?
आह!
ये तन्हाई में खुद से इश्क करने का मौसम है.
खुद में डूबने - तैरने - भटकने का मौसम है.
© गोविंद माधव
Bahut khub
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